उत्तरायण - 1 Choudhary SAchin Rosha द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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उत्तरायण - 1



१. स्त्रीत्व

पूछता हूं मैं जग से आज ललकार कर

क्या करते हो संदेह तुम उस अद्वितीय फनकार पर

हस्तक्षेप इस श्रृष्टि की रचना में

मुझे बताओ तुम करते किस अधिकार पर

क्यों कहते स्त्री को पुरुष के तू बराबर चल

होता संभव ऐसा अगर

तो क्यों करता स्त्री–पुरुष का भेद वो ईश्वर

शर्म करो,क्यों घटाते मान स्त्रीत्व का

उसको पुरुष के तुम बराबर कर

जो मां बनकर सारे जग को चलना सिखाए

उसको तुम क्या चलना सिखाओगे

जिसका कद स्वयं ऊंचा हो,जो स्वयं सशक्त हो

उसको क्या तुम ऊंचा उठाओगे

क्या मानोगे तुम उनको खोकर

जो अद्वितीय गुण स्त्री में विद्यमान है

आज भूल रही है अपना कर्तव्य

पुरुषत्व में लिपटी,ईश्वर की वो अद्भुत कृति

क्या कभी किया तुमने इस बात विचार है

जो ढाल है पूरे विश्व की

उसको क्यों कहते स्त्री तू लाचार है

बहुत हो गया ,अब तो रुको

क्यों बनते हो स्त्रीत्व के झूठे हितकारी

पुरुषत्व के पीछे दौड़ाकर,

स्त्रियों के स्त्रीत्व के अद्वितीय गुणों को भुलाकर

क्यों करते हो तुम यह भूल बड़ी भारी

ओ आधुनिकता की गाढ़ी चादर में लिपटे मनुष्य

कुछ तो शर्म कर

ध्यान दे अब तो अपने इस विवेक पर

पूछता हूं मैं जग से आज ललकार कर

क्या करते हो संदेह तुम उस अद्वितीय फनकार पर

सचिन रोशा (देवाँक सिंह रोशा)





२. दो कारण

आज नया दृश्य देख रहा था

मैं खड़ा डोल के नीचे

पक्षियों में भी ईर्ष्या देखी

वही,भूख के पीछे ।।

बगुला बगुले को खदेड़ रहा था

टटीरी दौड़ी टटीरी पीछे ।।

यह देखकर सिर चकराया

मनुष्य सहित समस्त जीवों की,

ईर्ष्या का फिर भेद समझ में आया ।

कारण निकले दो,

और समझ सको तो समझो भद्रो

लिखकर मैंने यह समझाया।।

सचिन रोशा (देवाँक सिंह रोशा)



३. अब आधुनिक भौतिकता से युद्ध होगा

देख देखकर इस भौतिक चकाचौंध को

मचल उठता हैं ,यह चंचल मन मेरा

आधुनिकता के चक्कर में

मनुष्य को, इस मलेच्छता ने कैसा घेरा

अध्यात्म रूपी तप करके

इस चंचल मन को वश में करके

इस आधुनिक भौतिकता से युद्ध होगा

सत्कर्म रूपी शस्त्र होंगे

और जो इस युद्ध की करे उद्घोषणा

शास्त्र वो शंख होंगे

परिवर्तन होना आवश्यक हैं

पर जो करे समाप्त मनुष्यता को

करो यदि तुम स्वयं ही ऐसा परिवर्तन

तो धिक्कार हैं तुम पर ,

और धिक्कार हैं तुम्हारे इस सोए हुए विवेक पर

क्या तुम सोच रहे हो,अब क्या होगा

तो यह सोचना तो निरर्थक होगा

करना है यदि कुछ ,तो स्वयं उठो

और उखाड़ फेंको अपने अंदर बसी उस दानवता को

यदि तुम ऐसा कर पाए

तो फिर वही खिले–खिले आंगन होंगे

तालाब किनारे बाग में

निर्भय–निश्छल खेलती फिर उन सखियों के टोले होंगे

पिता–पुत्र में अथाह प्रेम होगा

भाई–भाई में घनिष्ठ मेल होगा

माता–बहन का देवी सा सम्मान होगा

सारा संसार एक परिवार होगा

ना फिर कोई किसी का शत्रु होगा

विकास ,विकास करते हो, तभी तो सच में विकास होगा

देखो कैसा अद्भुत संसार होगा

हो जाए जो सच में ऐसा

तभी तो हमारे मनुष्य होने का कुछ अर्थ होगा।।

सचिन रोशा(देवाँक सिंह रोशा)



४. टुन्न की आवाज़

बैठा था मैं यूंही खाली सा खाट पर,

अचानक ही टूं की आवाज ने दस्तक दी मेरे कान पर

कुछ नहीं नोटिफिकेशन थी,

लिखा था हैप्पी दिवाली फोन की स्क्रीन पर

मेरे पटाखों की गन्ध थे जो,होली का गुलाल गाल पर

छोड़ संदेश निकल चुके है वह अब अर्थ की तलाश पर

यह कैसा समय चल रहा है,सबकुछ ही बदल रहा है

कभी त्योहारों पर श्रृंगार के,उल्लास के, स्नेहभरी मिठास के

रहते थे जो भाव भरे,

न जाने कब,स्वार्थ की गहराई में वह जा गिरे

देखो तो अब शुभकामनाएं भी बॅंट रही है केवल स्वार्थ भर

आज त्यौहार भी त्यौहार सा लगता नहीं त्यौहार पर

अब कुछ शब्दो के साथ टूं की ही आवाज आकर

बस रह जाती हर त्यौहार पर

Devank Singh Rosha


शुभ परिवर्तन के विचारों को केवल चिन्तन करने, कहने–सुनने, पढ़ने–पढ़ाने से कुछ नहीं होगा उनका यथावत पालन करना भी आवश्यक है।

धन्यवाद🙏😊............…..................................